परमेश्वर और मनुष्य का अनुगृह कैसे प्राप्त करें ? | Parmeshwar Aur Manushya Ka Anugrah Kaise Prapt Kare
May 10, 2025

यदि हम मसीह में हैं तो हमें परमेश्वर एवं मनुष्य दोनो के अनुगृह में बढ़ना चाहिये और मसीही जीवन का आनन्द लेना चाहिये। (लूका 2ः52) में पढ़ते है ‘‘और यीशु बुद्धि और डील-डौल में, और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुगृह में बढ़ता गया”।
इसी प्रकार शमूएल के जीवन में भी हम इसी बात को देखते है (01 शमूएल 02ः26) में “परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनो उससे प्रसन्न रहते थे”।
पवित्रशास्त्र हमे सिखाता है,
‘‘कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाए, वरन उनको अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना, तो तू परमेश्वर और मनुष्य दोनो का अनुगृह पायेगा, तू अति बुद्धिमान होगा”। (नीतिवचन 03ः03-04)
परमेश्वर का वचन हमे सिखाता है कि “कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं”। कृपा क्या है?
पहलि बात है कृपा – कृपा या करूणा वह भावना है जब हम किसी दूसरे की पीढ़ा या दुःख या परेशानी को देखते है वह कोई भी परेशानी हो चाहे मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक एवं अन्य कोई भी परेशानी या समस्या हो तो वह पीढ़ा या परेशानी जब हम स्वयं महसुस करते हैं और बोझ के साथ उस पीढ़ा या परेशानी को दूर करने की जो भावना जागृत होती है, यही कृपा या करूणा है। जब हम किसी के दुःख या पीढ़ा को देखकर दया से भर जाते है और हमारी जितनी सामर्थ है उस अनुसार लोगों की सहायता करते है तो हमारा परमेश्वर इस स्वभाव को देखकर प्रसन्न होता है, अनुगृह करता है, दया करता है। इसके साथ-साथ अन्य मनुष्य भी ऐसे स्वभाव से प्रसन्न रहते हैं एवं अपने प्रेम को प्रगट करते हैं, हमारी सहायता करते हैं।
हमारा परमेश्वर भी करूणामयी परमेश्वर है। जब वह हमारी कोई भी परेशानी या समस्या या पीढ़ा को देखता है तो वह भी दुखी होता है और हमारी समस्या को दूर करने के लिये इच्छा करता है। जब हमारा परमेश्वर, करूणामय परमेश्वर है तो हमारा भी स्वभाव करूणा या कृपा से भरा होना चाहिये जैसे कि उपर हमने सीखा करूणा या कृपा क्या है।
दूसरी बात है सच्चाई – कोई भी मनुष्य जब अपने जीवन में सच्चाई से चलता है या विश्वासयोग्यता से चलता है, चाहे उसे हानि भी उठानी पड़े तो इससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं । जब हम सच्चाई या विश्वासयोग्यता का जीवन यापन करते है तो मनुष्य भी हमारे स्वभाव से प्रसन्न होते है, हम पर भरोसा करते है, हमारे प्रति प्रेम को प्रगट करते हैं। हमारा परमेश्वर भी सच्चा और विश्वासयोग्य परमेश्वर है। पवित्र आत्मा को सहायता करने के लिये कहें कि वो हमें विश्वासयोग्य, सच्चा एवं ईमानदार बने रहने में हर समय मदद करे।
मेरे प्रिय भाई बहनों, हम अपने स्वभाव में करूणा और सच्चाई को शुमार करें। शमूएल के दिनों में परमेश्वर का वचन दुर्लभ था और बहुत कम ही परमेश्वर का दर्शन मिलता था। उन दिनों में भी परमेश्वर ने शमूएल से बात की क्योंकि शमूएल के जीवन में करूणा और सच्चाई दोनो बात थी। शमूएल प्रतिदिन नियमित रूप से परमेश्वर के मंदिर में सेवा करता था एवं प्रार्थना करता था।
आप अपने जीवन में परमेश्वर और मनुष्य दोनो का अनुगृह प्राप्त करना चाहते हैं, बुद्धिमान होना चाहते हैं तो कृपा या करूणा और सच्चाई या विश्वासयोग्यता को अपने स्वभाव में आने दें। आप प्रभु यीशु से प्रार्थना में मांगे। प्रभु आपको अपने करूणा और सच्चाई के स्वभाव से भर देगा।
आमीन।
नीतिवचन के इस पद ने मुझे उत्साहित किया…