Masih Jeevan

यीशु मसीह की पहिचान एवं सामर्थ्य में बढ़ने के लिये सहायता

यीशु मसीह की मानवता | Yeshu Masih Ki Manavata

यीशु मसीह की मानवता

          उद्धारकर्ता बनने के लिये यीशु को न केवल ईश्वरीय होना और कुंवारी से जन्म लेना आवश्यक था (जो हमने यीशु मसीह का कुंवारी से जन्म का महत्व एवं यीशु मसीह का ईश्वरत्व लेख में पढ़े हैं) परंतु उसे वास्तविक मनुष्य होना भी आवश्यक था। पापी होने के अतिरिक्त वह अन्य सभी बातों में हमारे समान मानव था।

01 तीमुथियुस 02:05 ‘‘क्योंकि परमेश्‍वर एक ही है, और परमेश्‍वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है।” यह वचन स्पष्ट रूप से बताता है कि वह पूर्ण मनुष्य था।

हम जो मांस और लहू में हैं वह भी हमारे लिये मांस और लहू बन गया। (इब्रानियों 02:14)

01 यूहन्ना 04:2-3 ‘‘परमेश्वर का आत्मा तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आने वाला है: और अब भी जगत में है।”

       परमेश्वर का वचन यह स्पष्ट करता है कि जो कोई आत्मा मान लेती है, यीशु शरीर में होकर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। दुष्टात्मा से भरा हुआ व्यक्ति ही यह कहेगा कि यीशु शरीर में होकर नहीं आया।

आईये हम यीशु मसीह पूर्ण मनुष्य है इस बात को जब यीशु मसीह अपने देह के दिनों में थे तब की घटनाओं को परमेश्वर के वचन से पढ़कर समझते हैं –

 

01. यीशु मसीह को मानवीय नाम दिये गये।

            इस संसार में जब भी कोई मनुष्य जन्म लेता है तो उसका नाम रखा जाता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो बिना नाम के हो। हर किसी का नाम होता है। इसी तरह जब यीशु इस संसार में मनुष्य के रूप में जन्म लिया तो उसका भी नाम ‘‘यीशु’’ रखा गया। मत्ती 01:25 – ‘‘…..और उसने उसका नाम यीशु रखा।”

 

02. यीशु मसीह भी हम मानव जैसे विकास किया।

a) यीशु बढ़ता गया:- जब हम परमेश्वर का वचन पढ़ते हैं तो पाते हैं कि यीशु मसीह भी सामान्य मनुष्य की तरह बढ़ता गया। वह असामान्य रूप से अचानक नहीं बढ़ा परंतु हर बात में मनुष्य की तरह परिश्रम किया।
 
लूका 04:20 – ‘‘और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया, और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था।’’
 
b) वह बुद्धि में परिपूर्ण होता गया:- परमेश्वर का वचन बताता है कि वह बुद्धि में बढ़ता गया।
 
लूका 02:52 – ‘‘और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया॥”
 
c) यीशु ने आज्ञा मानना सीखी:- यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र होने पर भी दुःख उठा उठाकर आज्ञा मानना सीखी।
 
इब्रानियो 05:08 – ‘‘और पुत्र होने पर भी, उस ने दुख उठा उठा कर आज्ञा माननी सीखी।”
 
d) यीशु ने दुःख उठाया:- यीशु मसीह दुःख उठाकर बहुत से पुत्र-पुत्रियों को महिमा तक पहुंचाया है। वह स्वयं दुःख उठाया है इसलिये वह हमारी दुःखों में हमारी सहायता करने में समर्थ है।
 
इब्रानियों 02:10 – ‘‘क्योंकि जिस के लिये सब कुछ है, और जिस के द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए, तो उन के उद्धार के कर्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।”
 
इब्रानियों 02:18– ‘‘क्योंकि जब उस ने परीक्षा की दशा में दुख उठाया, तो वह उन की भी सहायता कर सकता है, जिन की परीक्षा होती है॥”
 
e) उसने तीस वर्ष की आयु तक बढ़ई का काम किया:- यीशु मसीह जब इस संसार में मनुष्य के रूप में थे तब बढ़ई का काम किया। यीशु इतना अधिक मानवीय था कि फरीसी और शास्त्री लोग भूलवष उसे एक साधारण बढ़ई समझे।
 
मरकुस 06:03 – ‘‘क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब, योसेस, यहूदा, और शमौन का भाई है? क्या उसकी बहिनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिये उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई।”
यीशु की आयु लूका 03:23 में दी गई है। जब वह उपदेश देने लगा तब वह तीस वर्ष की आयु का था।
 
f) उसकी परीक्षा ली गई:- परीक्षाएं मत्ती 04:01-11 में हम पढ़ते हैं।
 

03. यीशु सामान्य मानवीय प्रवृत्तियों से प्रभावित होता था।

a) उसे भूख लगती थी:- यदि हम मत्ती 04:02 में पढ़ते हैं तो पाते हैं कि ‘‘वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, अन्त में उसे भूख लगी।” इसी प्रकार मत्ती 21:18 पद में पढ़ते हैं ‘‘तो जब वह नगर को लौट रहा था तब उसे भूख लगी।’’ और अंजीर का एक पेड़ सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गयाए और पत्तों को छोड़ उस में और कुछ न पाकर उस से कहाए अब से तुझ में फिर कभी फल न लगेय और अंजीर का पेड़ तुरन्त सुख गया।

b) उसे प्यास लगती थी:- यूहन्ना 04:07 – ‘‘इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई: यीशु ने उस से कहा, मुझे पानी पिला।” यहां यीशु को प्यास लगी थी।

c) वह थक जाता था:- यूहन्ना 04:06 – ‘‘और याकूब का कूआं भी वहीं था; सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कूएं पर यों ही बैठ गया, और यह बात छठे घण्टे के लगभग हुई।” यीशु हमारे समान ही मांस और लहू में आया था और यीशु प्रभु भी थक जाते थे।

d) वह सो जाता था:- मत्ती 08:24 – ‘‘और देखो, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढंपने लगी; और वह सो रहा था।” यह घटना बताती है कि यीशु को भी नींद आती थी।

e) वह प्रेम करता था:- मरकुस 10:21 – ‘‘यीशु ने उस पर दृष्टि करके उस से प्रेम किया, और उस से कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” यहां एक मनुष्य की घटना है जो धनी था और अनन्त जीवन पाने के विषय में यीशु से प्रश्न करता हैं।

यीशु ने उससे प्रेम किया और कहा जो कुछ तेरे पास है उसे बेचकर कंगालों को दे दे और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, किन्तु वह मनुष्य उदास होकर वापस लौट गया क्योंकि वह बहुत धनी था।

f) उसके हृदय में करूणा थी:- मत्ती 09:36 – “जब उस ने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे।”

g) उसे क्रोध आता था और शोकित होता था:- मरकुस 03:4-5 – ‘‘और उनसे कहा, “क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना, प्राण को बचाना या मारना?” पर वे चुप रहे। उसने उनके मन की कठोरता से उदास होकर, उनको क्रोध से चारों ओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया।”

h) उसने श्रद्धापूर्ण आस्था प्रकट की:- इब्रानियों 05:07 – ‘‘उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आंसू बहा बहा कर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।”

i) वह बेचैन हुआ:- यूहन्ना 11:33 ‘‘ जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे, रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ “

j) वह रोया:- यूहन्ना 11:35 – ‘‘यीशु रोया’’ जब लाजर को मरे हुये 04 दिन हो गये थे तब यीशु वहां पहुंचा था। जब मरियम और यहूदियों को रोते हुये देखा तो मन में बहुत उदास हुआ और यीशु के आंखों से आसू बहने लगे। इसके बाद यीशु लाजर के कब्र के बाहर से बड़े शब्द से पुकारा ‘‘हे लाजर निकल आ’’ और 04 दिन का मूर्दा लाजर जीवित होकर बाहर आया। प्रभु की स्तुति हो।

k) उसने प्रार्थना की:- मत्ती 14ः23 – ‘‘वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और सांझ को वहां अकेला था।”

04. यीशु में देह, प्राण और आत्मा थी।

 

a) यीशु की एक देह थी:-  यीशु मनुष्य रूप में जन्म लिया और हमारी, जैसे देह है वैसे ही यीशु की देह थी। यीशु के देह के विषय में आप बाईबल में बहुत सारे वचन को पा सकते है। इनमे से कुछ वचन देखते हैं।

मत्ती 26:12 -‘‘उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उंडेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है।’’ यह घटना तब कि है जब बैतनियाह में शमौन कोड़ी के घर में यीशु था और वहां एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लाकर यीशु के देह में उण्डेल देती है, और यीशु कहते हैं सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, तो उसके काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त आप यीशु की एक देह थी यूहन्ना 01:14, इब्रानियों 02:14, यीशु का शरीर गाड़ा गया, लूका 23:52-53, में पढ़ सकते हैं।

b) यीशु में प्राण था:- हम में जैसे प्राण है वैसे ही यीशु में प्राण था। यदि हम मत्ती 26:38 पढ़ते हैं तो पाते हैं कि यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को कहते हैं मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते हैं।

यीशु प्रभु ने यह भी कहा कि उसे प्राण देने का भी अधिकार है, और उसे फिर ले लेने का भी अधिकार है (यूहन्ना 10:18)।

c) यीशु में आत्मा थी:- यीशु प्रभु में आत्मा थी जो कि मृत्यु के उपरान्त पिता के पास लौट गई। लूका 23:46 ‘‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं।’’

05. यीशु की मृत्यु हुई

जब कोई मनुष्य के रूप में जन्म लेता है तो अंतिम सत्य यह है कि उसकी मृत्यु होती है। इब्रानियों 09:27 ‘‘और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है।” यीशु को भी इस नियम का पालन करना आवश्यक था। यीशु की मृत्यु युवावस्था में, कलवरी पर क्रूस पर चढ़ाए जाने के कारण हुई। आप लूका 23:33 में भी पढ़ सकते हैं।

यीशु जगत में मरने के लिये आया और मृत्यु उसकी मानवता का सबसे बड़ा प्रमाण है। यीशु केवल दो बातों को छोड़ हम सब के समान मानव था।
उसके स्वभाव में पाप नहीं था।

वह निष्पाप था क्योंकि उसने कभी एक भी पाप नहीं किया था।

प्रभु परमेश्वर यीशु मसीह आपको आशिष दे,

आमीन।

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